Nargis Dutt: नरगिस दत्त की मां थीं एक मशहूर तवायफ, कर्ज चुकाने के लिए बेटी को बनाया एक्ट्रेस
Nargis Dutt Mother: संजय लीला भंसाली की नई वेब सीरीज हीरामंडी इस समय नेटफ्लिक्स पर ट्रेंड कर रही है, जिसमें तवायफ की कहानी दिखाई गई है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि संजय दत्त की दादी और नरगिस दत्त की मां तवायफ थीं.
नई दिल्ली:
Nargis Dutt Mother Tawaif: जब से संजय लीला भंसाली की नई वेब सीरीज हीरामंडी इस समय नेटफ्लिक्स पर ट्रेंड कर रही है, जिसमें तवायफों और नवाबों की कहानी दिखाई गई है. हर कोई तवायफों के बारे में जानने में दिलचस्पी रख रहा है, तो चलिए आपको उस सुपरस्टार नरगिस की मां के बारे में बताते हैं, जो एक तवायफ थीं. बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त ने अपने एक बयान में कहा है कि उनकी नानी जद्दनबाई उत्तर प्रदेश से थीं. जानकारी के अनुसार, जद्दनबाई की शादी के बाद उसे विदा किया जा चुका था, लेकिन लौट रही बारात पर डाकुओं ने हमला कर दिया, दहेज लूट लिया और उसके पति को भी गोली मार दी. इसके बाद, युवा विधवा को उसके ससुराल वालों ने प्रताड़ित किया और उसे 'जन्म से बदकिस्मत' घोषित कर दिया.
संजय दत्त की नानी कोलकाता की तवायफ थीं
हर रोज़ की तरह वह नदी किनारे कपड़े धोती और लोकगीत गुनगुनाती रहती. एक दिन जब वह नदी किनारे कपड़े धो रही थी, तो वहां से गुज़र रहे जात्रा मंडली की एक महिला ने उसकी दुखभरी कहानी सुनी। उसने उससे अपने साथ चलने को कहा. इस तरह संजय दत्त की नानी कोलकाता आईं और उन्हें एक कोठे को सौप दिया गया. उस दौर में दो तरह के कोठे होते थे- एक में केवल ठुमरी और नृत्य होता था जैसा हम ‘पाकीज़ा’ में देख चुके हैं. दूसरे किस्म के कोठे में शरीर का व्यापार होता था. इस तरफ कोठेवालों ने उन्हें नया नाम दिया जद्दनबाई.
नरगिस दत्त का जन्म मोहन बाबू से शादी के बाद हुआ
उस समय पंजाब के एक अमीर आदमी का बेटा मोहन बाबू मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए कोलकाता से लंदन जा रहा था। फ्लाइट के आने में कुछ दिन की देरी होने के कारण मोहन बाबू को कोलकाता में ही रुकना पड़ा. एक दिन वे घूमते-फिरते जद्दनबाई के कोठे पर जा पहुंचे. साथ ही वह उसकी खूबसूरती और आवाज सुन का इतना दीवाना हो गए कि उससे शादी करने की जिद करने की ठान ली. मोहन बाबू के परिवार ने उन्हें सारी संपत्ति से वंचित कर दिया.
नेहरू ने नरगिस को सफेद साड़ी पहनने की सलाह दी थी
जद्दनबाई को एक भावुक प्रेमी से शादी करनी पड़ी, जो उनके तीसरे पत्ती थे, जिनसे उनकी एक बेटी हुई जिसका नाम नरगिस रखा. जद्दनबाई अपनी किस्मत आजमाने मुंबई आईं जहां उनकी ठुमरी गायकी को खूब सराहना मिली. फिल्म के घाटे को पूरा करने के लिए वे नरगिस को अभिनय के क्षेत्र में ले आईं. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही नरगिस ने कांग्रेस अधिवेशन में स्वयंसेवक के रूप में काम किया. वहां नेहरू ने उन्हें सफेद साड़ी पहनने की सलाह दी और ताउम्र नरगिस ने सफेद साड़ी ही पहनी.
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