Heeramandi: नेटिजेंस ने निकाली संजय लीला भंसाली की सीरीज में ये गलतियां, जानें क्या है पॉइट्स
Heeramandi: इंटरनेट पर दावा किया जा रहा है कि संजय लीला भंसाली ने अपने डेब्यू शो हीरामंडी: द डायमंड बाज़ार में लाहौर के इलाके को जिस तरह से दिखाया है, उसमें ऐतिहासिक ग़लतियां हैं.
नई दिल्ली:
नेटफ्लिक्स इंडिया पर संजय लीला भंसाली के डेब्यू शो हीरामंडी: द डायमंड बाज़ार को मिली-जुली रिव्यू मिली हैं. अब, कुछ इंटरनेट यूज़र्स ने इस पीरियड ड्रामा में ऐतिहासिक ग़लतियों का दावा किया है, जिसमें आज़ादी से पहले के लाहौर इलाके को किस तरह से दिखाया गया है और किस तरह से स्क्रीन पर कुछ एलिमेंट्स टाइमलाइन को गलत तरीके से पेश करते हैं. लाहौर में रहने वाली एक युवा डॉक्टर हम्द नवाज़ ने एक्स पर एक थ्रेड लिखा है, जिसमें बताया गया है कि भंसाली का शो हीरामंडी इलाके से बिल्कुल अलग है.
To begin with, where exactly is it set? Lake Como? Amalfi Coast? The most evident landmark still visible from every building in today’s remnants of Heera Mandi is the Shahi Qilla-Grand Mosque’s doom and minarets skyline. If you call it Lahore, show Lahore. pic.twitter.com/rR7lVEWW6f
— Hamd Nawaz (@_SophieSchol) May 3, 2024
हीरामंडी को किस तरह से दिखाया गया है
उन्होंने लिखा, अभी हीरामंडी देखी. इसमें हीरामंडी के अलावा सब कुछ मिला. मेरा मतलब है, या तो आप अपनी कहानी 1940 के लाहौर में सेट नहीं करते हैं, या अगर करते हैं- तो आप इसे आगरा के परिदृश्य, दिल्ली की उर्दू, लखनवी पोशाक और 1840 के माहौल में सेट नहीं करते हैं. मेरा लाहौरी स्वभाव वास्तव में इसे जाने नहीं दे सकता. हीरामंडी टैक्सली गेट से लेकर आधुनिक समय के फजय के पाये या चीत राम रोड तक फैली हुई है.
Just watched Heeramandi. Found everything but heermandi in it.
— Hamd Nawaz (@_SophieSchol) May 3, 2024
I mean either you don’t set your story in 1940’s Lahore, or if you do- you don’t set it in Agra’s landscape, Delhi’s Urdu, Lakhnavi dresses and 1840’s vibe. My not-so-sorry Lahori self can’t really let it go. pic.twitter.com/1O6Iq36SV9
अमीर खुसरो का सकल बन उस टाइम का नहीं
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि 1940 के दशक में औसत लाहौरी पंजाबी में बात करते थे, न कि उर्दू में, जैसा कि भंसाली ने अपनी सीरीज में दर्शाया है. उन्होंने यह भी कहा कि अमीर खुसरो का सकल बन उस युग में गाया जाने वाला गीत नहीं था. उन्होंने कहा, "सकल बान लाहौरी गाने की चीज़ नहीं थी, बल्कि चैती बौडी वे तबीबा थी. यह 1940 का दशक था, नूरजहां की पंजाबी मास्टरपीस थीं - सिनेमा ने हीरामंडी के कई गायकों को मंच दिया था.
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